21 December 2013

WHAT KEEPS OUR CHILD BACK...

       संतान के सफलता की राह रोकने वाली परिस्थितियां 

 कोई भी माता-पिता अपनी संतान के जीवन को सर्वदा ही उन्नत और समृद्ध देखना चाहते हैं। हर हाल में संतान के प्रति सद्भावना बनाए रखने की भावना ही माता-पिता को संपूर्णता  से माता -पिता होने का गौरव प्रदान कराती है। पर, दुर्भाग्य से ज्यादातर माता-पिता के ज्ञान , अनुभव , मूल्य व साधन इतने समृद्ध नहीं होते जिसके बल पर वे अपनी  संतान कि दशा  और दिशा श्रेष्ठ  बना सकें तथा पूरी काबिलियत के साथ उनका सही मार्गदर्शन करते हुए
उनके जीवन में उनके लिए सफलता के बड़े द्वार खोल सकें। 
           यहाँ यह बात फिर से याद  दिलाना आवश्यक है कि माता -पिता जानबूझ कर अपनी संतान का अहित नहीं करते पर उनकी अज्ञानता , अनुभवहीनता, कमजोर मूल्य व साधन के अभाव आदि का प्रभाव उनकी संतान के पालन-पोषण व मार्गदर्शन पर अवश्य पड़ता है। 
   आइए, ऐसी कुछ स्थितियों को जानने और समझने का प्रयास करें  जो माता-पिता के ज्ञान और अनुभव के अभाव में जन्म लेते हुए ऐसी स्थिति को जन्म देते हैं जो उनकी सन्तान के जीवन में प्राप्त होने वाली सफलता व समृद्धता की  संभावनाओं को कमजोर करती हैं। 
माता-पिता के भाग्यवादी नजरिया के साथ संतान के कर्मशील प्रवृति के द्वन्द की  स्थिति :- यह एक ऐसी स्थिति है जब माता-पिता अपनी संतान के लिए उदासीन रवैया अपनाते हैं। ऐसे माता-पिता अपने बच्चो के लिए अपने ज्ञान और अनुभव का प्रयोग सटीकता से नहीं कर पाते क्यूंकि ये समझते  हैं कि जो कुछ उनके नसीब में लिखा है वही उन्हें मिलेगा।
इनकी हर प्राप्ति इनके नसीब से जुडी होती है तथा इनका नसीब इनकी हथेली  की  लकीरों से। ऐसे माता -पिता अपने बच्चों के लिए कमज़ोर प्रयासों और साधनों का प्रयोग करते हैं।  
     उदाहारण के तौर पर अगर ऐसे माता-पिता को अपने  बच्चों   का एडमिशन, स्कूल में कराना हो तो तो ये कम fee वाले स्कूल ढूढंने का प्रयास  करते हैं क्योंकि ये ऐसा मानते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि  उन्हें जो बनना है वो बन कर रहेगें जबकि सजग माता-पिता आर्थिक  परेशानी रहने पर भी 'कम fee में अच्छी पढाई वाला  स्कूल' का चयन करते हैं। 
     यहाँ यह बात हर माता -पिता को जान लेना चाहिए  कि ईश्वर पे भरोसा करना यानि आस्तिक बने रहना अच्छी बात होती होती है  पर उससे भी जरूरी बात होती है दिए गए कार्य अथवा दायित्व  को पूरा करने का प्रयास करना। आप के प्रयास जितने अच्छे होगें  उससे प्राप्त फल भी उतना ही मीठा होगा।
प्रखर स्वभाव वाले माता-पिता की अंतर्मुखी संतानें  :- ज्यादातर लोग मानवमात्र के दो स्वभाव यथा -अंतमुखी व वाह्यमुखी  स्वभाव से परिचित होते हैं पर वास्तव में अंतःमुखी स्वभाव के व्यक्ति  को  ठीक से समझना और उनके साथ उनके अनुसार व्यवहार करना सब के बस की  बात नहीं होती। और, परेशानी तब पैदा होती है जब प्रखर स्वभाव के माता -पिता के पास  अंतर्मुखी स्वभाव की संतानें होती हैं।
सामाजिक स्तर पर  एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से सम्बन्ध बनाने के लिए अपने व्यवहार के अनुसार उसे स्व्यं चुनने के लिए स्वतंत्र होता है पर यह बात  माता-पिता और संतान के बीच लागु नहीं होती। इसलिए उस वक्त बड़ी समस्या  उत्पन्न होती है जब प्रखर व्यक्तित्व के माता  -पिता की  संतानें  अंतर्मुखी होती हैं। यहाँ यह जान लेना जरूरी है कि इसकी विपरीत स्थिति  उतनी समस्या उत्पन्न नहीं करती। यथा,अंतर्मुखी स्वभाव वाले माता-पिता अपने सभी प्रकार के स्वभाव वाली संतानों  के मार्गदर्शन में सफल रहते हैं।   
    मनोविज्ञान दर्शाता है कि अंतर्मुखी स्वभाव वाले लोग शांत, शांतिप्रिय, एकाकी पसंद , कला प्रेमी, कल्पनाशील,कोमल मन और शरीर वाले रचनात्मक प्रकृति के होते हैं। वे ज्यादातर  कम मगर स्पष्ट बोलने वाले होते हैं।प्रखर स्वभाव वाले माता-पिता को इनका यही स्वभाव नागवार गुज़रता है। 
ऐसी चुप सन्तानें जो हमेशा ख़ामोशी के साथ कुछ नया व अलग करने के ख्यालों में खोई  रहती  हैं, इनके वाहयमुखी माता-पिता को अयोग्य और प्रतिभाहीन दिखती हैं जबकि सच्चाई इससे बिलकुल परे होता है। 
यहाँ , प्रत्येक माता-पिता को आवश्यक रूप से यह जानना चाहिए कि हमारी ऐसी ही संतानें कला, संस्कृति, साहित्य और खोज के क्षेत्र में दुनियाँ में यश और मान प्राप्त करते हैं पर ये अपने माता- पिता के लाख प्रयास के बाद भी पुलीस ऑफिसर बनने से इंकार कर देते हैं।  
इसलिए प्रत्येक माता -पिता  का यह परम कर्त्तव्य है की भले वे अपनी सभी संतानों के साथ एक जैसा प्रेम करें पर वे उनके साथ  व्यवहार उतने प्रकार से करें  जितने कि वो संख्या में हैं। 
बढ़ते बच्चों के साथ माता-पिता  के अव्यवहारिक या तार्किक स्तर पर खड़े न उतरने वाले व्यवहार :- लोगों के अव्यवहारिक व्यवहार, विचार  या कार्यकलाप सामान्यत: यह दर्शाते हैं कि या तो उन्होंने उनके बारे में कुछ जाना या सीखा नहीं है या फिर अपने कमजोर ज्ञान, अनुभव या मूल्यों के कारण वे वैसा व्यवहार करने के आदि नहीं हैं। हमारा समाज ऐसे लोगों से भरा पड़ा है जो ज्यादातर चीज़ों अथवा स्थितियों को सिर्फ सतही स्तर पर समझने की कोशिश करते  है या फिर उसी स्तर तक ही समझ सकता हैं। 
और, जब ऐसे लोग माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं तब इनके अव्यवहारिक विचार , व्यवहार अथवा कमज़ोर तर्क वाले तथ्य इनके school/college में पढने वाले बच्चों के बातचीत और व्यवहारों से मेल नहीं खाते। अगर ऐसे माता -पिता स्वयं में बदलाव लाने  का प्रयास नहीं करते तो आगे ये अपनी  संतानों कि दशा और दिशा  संयोजित करने में  ज्यादातर नाकामयाब ही होते हैं। 
   अत: यह जरूरी है कि प्रत्येक माता-पिता अपने ज्ञान और अनुभव को निरंतर निखारने का प्रयास करते रहें, नए विचारों का स्वागत करें तथा अपने बातचीत व व्यवहारों को इस प्रकार से नियोजित करें जिससे उनकी संतानों का सही मायने में विकास हो  तथा उनके  विचार व व्यवहार उनकी संतान के लिए सफलता के नए द्वार खोलें न की उनकी राह में रोड़े अटकाने  का कार्य करें।


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