22 December 2013

Correct your behaviour towards your kids, Easily/(हिंदी)




संतान के प्रति माता -पिता के बातचीत,व्यवहार व सोंच की  प्रमाणिकता  व सार्थकता को सिद्ध  करने वाला एक सफल सूत्र -- "सार्थक व्यवहार का नियम "

  क्या है 'सार्थक व्यवहार का नियम' ?
 वास्तव में माता-पिता अपनी संतान के लिए जो कुछ भी करते हैं, जिस प्रकार से करते हैं या नहीं करते हैं ये सब कुछ उनके बातचीत, व्यवहार व सोंच से ही निर्देशित होता है और आगे उनके यही विविध व्यवहार  संतान के  संवर्धन  व मार्गदर्शन में बड़ी भूमिका निभाते हैं। 
माता -पिता के ऐसे व्यवहार हर जगह आम हैं पर विशेष बात यह है कि माता-पिता के ऐसे बातचीत व व्यवहार जिसे उनकी संतानों की  सहर्ष स्वीकृति प्राप्त हो, ऐसा कम देखने को मिलता है।
   परिवार व समाज के वर्त्तमान ढांचे में संचार के विविध नए तकनीकों यथा, मोबाईल, टेलीविज़न व इसके १०० से ज्यादा चैनल्स , कम्पुटर इंटरनेट आदि ने हमारी संतानों को नए सोंच व वैज्ञानिक संस्कारों से भर दिया है।  मैं यहाँ यह दावे के साथ नहीं कह सकता कि वे पहले से ज्यादा ज्ञानी और सभ्य हो गए हैं पर उनकी वर्त्तमान सोंच अब बिलकुल नए सांचे में ढाल चुकी है। ये ज्यादा प्रखर दिखने के साथ-साथ ज्यादा चपल, चंचल और ज्यादा उदंड भी दिखाते हैं। आज की  संतानें उम्र से पहले वयस्कों जैसा व्यवहार करती दिखाई पड़ती हैं। ऐसे तेजी से बदल रहे  जीवन मूल्यों के दौर में हमारी नई  संतानों को सम्हालना, उनके लिए नई दिशाओं को तय करना या उनके साथ अपने विचारों को बांटना व उनके साथ व्यवहार करना, माता-पिता के लिए उनका  संयोजन व मार्गदर्शन  सबसे श्रेष्ठ प्रदर्शन की मांग करने लगा है। परन्तु, ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हुए भी अपनी  संतानों  के उत्तरदायित्वों का निर्वहन  करना ही तो उनका सबसे बड़ा दायित्व है। 
अभी भी यह प्रश्न शेष है कि नए ज़माने के इन नए पौध की सही परवरिस कैसे कि जाए अर्थात माता-पिता अपने बातचीत, व्यवहार व मूल्यों का आदान-प्रदान कैसे करें कि  उनकी सन्ताने उनकी भावानाओं व व्यवहारों का मान रखें। 
   सार्थक व्यवहार का नियम हमें माता-पिता के इन्हीं विविध प्रयासों के श्रेष्ठ संयोजन व मूल्यांकन की  नई राह दिखलाता है। 
  दरअसल, माता-पिता के बातचीत, व्यवहारों व मूल्यों से जुडी उनकी विविध क्रियाओं व प्रतिक्रियाओं में ऐसे बहुत सरे भाव व परिस्थितिजन्य  तत्व छुपे होते हैं जो उनके विविध व्यवहारों के सार्थकता व निरर्थकता को निश्चित कर सकते हैं। 
सार्थक व्यवहार के नियम कि परिभाषा :- माता-पिता के संपूर्ण बातचीत,व्यवहार व मूल्यों से सम्बंधित उनकी समस्त क्रियाएँ व प्रतिक्रियाएं सार्थक व मूल्यवान हो सकती हैं अगर उनका क्रियान्वयन- 
सही समय पर किया जाये 
सही जगह पर किया जाये 
सही प्रसंग के साथ किया जाये 
सही विषयवस्तु के साथ किया जाये 
सही शब्द-विन्यास के साथ किया जाये 
सही भावना के साथ किया जाये 
सही उद्देश्य के लिए किया जाये 
सही भाव व संप्रेषण के साथ किया जाये 
साथ ही, संतान के उम्र व अनुभव, क्रियाओं व प्रतिक्रियाओं के अल्पकालीन व दीर्घकालीन , मानसिक, शारीरिक व नैतिक प्रभाव को स्मरण रखते हुए किया जाये। 
नियम का विश्लेषण : एक माता-पिता के रूप में आप सबसे पहले यह पूछ सकते हैं कि क्या व्यवहारिक रूप से यह सम्भव है कि आप अपनी संतान के साथ व्यवहार करते समय या ठीक उससे पहले इन सारी बातों का ख्याल रख सकें। आप का यह प्रशन कुछ हद तक सही है पर भाग्य से आपके इस प्रश्न का समाधान भी आपके इसी प्रश्न में छुपा है।अगर आप मुझपर भरोसा करें तो मैं आपके इस कठिन कार्य हेतु आसान हल देने का प्रयास कर सकता हूँ जो आपके विविध व्यवहारों के ज्यादातर क्रियाओं व प्रतिक्रियाओं को आपकी संतान के लिए स्वीकार्य बना सकता है। 
माता-पिता के सम्पूर्ण व्यवहारिक क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं, संवाद, आदेश व निर्देश आदि को श्रेष्ठता प्रदान करने वाले अनमोल सुझाव :
१. आप उस वक्त अपने बच्चो से कोई अनावश्यक व्यवहार न करें जब आप क्रोधित हों और उसका कारण आपके संतान न हों। 
. अपने बच्चो के किसी भी कार्य अथवा व्यवहार पर त्वरित कारवाई न कर उसके लिए प्रयाप्त वक्त लें। 
. बच्चों के मूल्यवान व अर्थ रख़नेवाले प्रश्नों के उत्तर जल्दबाजी में न दें। इसके लिए प्रयाप्त समय लें। 
.अपने  मूल्यवान या महत्वपूर्ण बातों जैसे- आपके अनुभव, सुविचार, राय मशवरे  को अपने बच्चो से तब बाटें  जब वे शांतचित व प्रसन्नचित हों। 
. अपने बच्चों से तार्किक रूप से  न ठहरने वाले मुद्दों पर बहस न करें। 
. अगर आपको लगता है कि आपकी संताने निश्चय ही  कुछ अनुचित कर रही हैं तो आपको उसे हर हाल में रोकना चहिये। यहाँ इस बात  से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उसे किस प्रकार रोकते हैं। पर इस बात से बहुत फर्क पड़ता है अगर आप उस कार्य से पूरी तरह दूर हो जाने पर भी उसे उसके रोके जाने के कारण से अवगत नहीं कराते। 
मैं आशा करता हूँ कि आप इन बातों को अपने व्यवहार में उतारते हुए  अपने संपूर्ण भाव व व्यवहारों को पहले से बेहतर बनाकर अपनी सतानों के सहज स्वीकृति का ज्यादा आनंद प्राप्त कर सकेगें। 
धन्यवाद्। 

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