27 August 2013

WHY DO WE CONSIDER PARENTS AS "GOD"...?

          

माता-पिता ईश्वर के प्रतिरूप होते हैं …

क्यों और कैसे ?
  मित्रों,
             बेशक आप अंग्रेजी के GOD शब्द का विस्तारित अर्थ जानते होंगे। यह शब्द दरअसल अंग्रेजी  के तीन शब्दों के मेल से बना है। यहाँ G का अर्थ है Generator, O का Operator तथा D का अर्थ Destroyer है।  अर्थात जो विश्व का सृजन करे, इसका संचालन करे व धरा के समस्त जीवों को मोक्ष प्रदान करे वही GOD अर्थात
वही ईश्वर है। 
        मैं नहीं जानता कि जगत के सर्वशक्तिमान उस ईश्वर को उनके सृजन व सञ्चालन के कार्य में कौन उनकी सहायता करते हैं  पर यह बात मैं प्रमाणित तौर पर कह सकता हूँ कि ईश्वर ने धरा के सृजन का कार्य पूर्णतः माता-पिता के हाथ सौंपा हुआ है। साथ ही यह भी सत्य है कि सृष्टि के अस्तित्व को बनाये रखने वाले  माता-पिता के इस विशिष्ट संयोजन में ईश्वर किसी प्रकार के अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करते । 
        वास्तव में कोई अभिभावक, केयर-टेकर, घर के वयस्क व बड़े -बुजुर्ग, सगे-संबंधी या अन्य, इनमे से सभी एक बच्चे के पालन-पोषण व परवरिश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं या निभा सकते हैं पर एक संतान के लिए माता -पिता का क्या मूल्य है ये सबसे बेहतर वे संतानें जानतीं हैं जिसने अपनी वयस्कता बिना माता या पिता के या दोनों के बगैर प्राप्त किया  है। 

   बड़ा दुर्भाग्य है कि इस तथ्य को समझते हुए भी ज्यादातर संतानें अपने माता-पिता के निःस्वार्थ प्रेम को, उनके समर्पण सहयोग व मार्गदर्शन के मूल्य को ताउम्र नहीं समझ पाते और कुछ लोग , जो  समझ भी पाते हैं तो तब, जब उनकी संताने उनके सामने वही दृश्य उपस्थित कराते हुए वही प्रश्न पूछ बैठती हैं - " आपने मेरे लिए किया क्या है...! "
    दुनियाँ का एक शाश्वत  नियम यह है कि सभी जीव सबसे ज्यादा स्नेह अपनी संतानों से करते हैं क्योंकि नैसर्गिक रूप से उनका अस्तित्व ही अपने नए वंश की स्थापना और उनके संरक्षण के लिए हुआ है।  मनुष्य सह सभी जीवों के साथ एक बात और समान है कि दुनियां का कोई भी जीव अपने माता-पिता से अपने अस्तित्व को पाने का अधिकार नहीं प्राप्त कर सकता क्योंकि किसी जीव के नए वंश कि स्थापना उसके माता-पिता के स्वतंत्र सह-प्रयोजन पर टिका होता है जहाँ नए वंश अपने अस्तित्व से पहले अपने अस्तित्व कि लड़ाई नहीं लड़ सकते। 
    दुर्भाग्य से दुनियाँ के अन्य जीव ऐसे विचारों को किसी भी तरह से प्रसारित करने में सक्षम नहीं होते जबकि मनुष्य, जिनकी क्षमता विशाल है, वह आज भी यही जानना चाहते है  कि जो माता-पिता उन्हें बिना किसी आवेदन के एक नई  दुनियां देखने और भोगने का अवसर प्रदान करने के साथ-साथ - कुल, समाज, देश व विश्व के अस्तित्व कि रक्षा के लिए नवीण वंश के द्वार खोलते हैं, हम उनका सम्मान क्यों और कैसे करें।

                वास्तव में संतान के प्रति माता- पिता की सच्ची सद्भावना ही उन्हें सारे  मानवीय सम्बन्धों में खास बनाती हैं। दुनियादारी,  झूठी-सच्ची  बातों व व्यवहारों का पुलंदा होती है। लोग अपना काम निकालने के लिए झूठी तारीफ़ करते हैं, झूठे सपने दिखाते हैं, प्रलोभन देते हैं पर काम निकल जाने के बाद या मना कर देने पर प्रकट होने वाला उनका व्यवहार हमें आश्चर्यचकित करता है। ज्यादातर लोग बातों से ज्यादा ग़लत  नीयत के शिकार होते हैं। पर, यह बात माता-पिता और संतान के बीच लागु नहीं होती क्योंकि माता -पिता अपने संतान के प्रति कभी गलत भावना नहीं रखते। संतान से कष्ट हो जाने पर भी वे उनके लिए सद्भावना बनाए रखते हैं।

           यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि प्रत्येक १०० वर्षों में दुनियां के ९९% से ज्यादा लोग दुनियां को अलविदा कह जाते हैं तथा उनकी जगह पर उनसे ज्यादा नए लोग आकर आसीन हो जाते हैं।  जो जाते हैं वो बेशक माता-पिता हैं पर संतान के रूप में उनकी जगह लेने वाले भी दरअसल माता-पिता ही हैं क्योंकि आगे नए वंश के सृजन का बड़ा भार इन्हीं के कन्धों पर होता है। दुर्भाग्यवश हम माता-पिता के इस श्रेष्ठ कार्य के लिए उनका ऋण नहीं मानते। हमें हमारे पूर्वजों के इस अमूल्य सहयोग का सम्मान करते हुए  हमें हमारे कुल और वंश के इन रक्षकों का योग्य सम्मान करना चाहिए। 
  संतान को बिना शर्त सबकुछ  देने के लिए सदैव तैयार रहना भी माता-पिता की एक बड़ी विशेषता है जो संतान की सबसे बड़ी शक्ति और सुरक्षा होती है। सिर्फ  माता-पिता ही ऐसे होते है जो बिना शर्त, बिना कुछ पाने की आशा किए हर पल, हर क्षण अपनी संतान के लिए, यथायोग्य,  अपना सब कुछ समर्पित करने के लिए तैयार रहते हैं।मुझे यद् है जब मैं पटना में रहकर मैनेजमेंट की पढाई कर रहा था। उस वक्त मेरे पिता ने मुझे हर माह २०००=०० रुपये खर्च के लिए दिए जबकि उस वक्त वे बेरोज़गारी के दिन झेल रहे थे। उस वक्त, क्या कोई और मेरे लिए ऐसा कर सकता था ? निश्चित  ही उस वक्त मैं अपने पिता के उस योगदान का मूल्य नहीं समझ पाया पर आज मैं उस बात कि अहमियत समझ सकता हूँ।यहाँ आवश्यक यह है कि हम इस बात को समझें कि सिर्फ मेरे पिता नहीं वरन हर संतान के माता-पिता ऐसे ही होते हैं। हकीकत यह है कि एक संतान के लिए उसके माता-पिता द्वारा छोड़े हुए कार्य को ईश्वर के सिवा और कोई पूरा नहीं कर सकता।  
                    क्या कभी आपने किसी मासूम बच्चे को इस प्रकार से रोते हुए देखा है जो किसी कि गोद में चुप होने का नाम न ले रहा हो और जैसे ही अपनी माता के गोद में जाये, अचानक चुप हो जाए। अगर आपने माता और शिशु के ऐसे व्यवहार को नहीं समझा तो आप माता- पिता के मूल्यों को समझने से कोसों दूर हैं। बेशक ये कोई जादू नहीं नहीं है। यह अनोखा सम्बन्ध  माता -पिता के विशुद्ध वात्सल्य प्रेम, विश्वास  और भरोसा के सिवा और कुछ नहीं पर इसे समझ लेना इतना आसान भी नहीं। यही कारण है कि भरोसा तोड़ देने के बाद भी क्षमा मांगने पर माता- पिता अपने बच्चों को अंतरात्मा से माफ़ करने का गुण रखते हैं।  
         

  एक पिता जो किसी त्यौहार पर अपने सभी बच्चों के लिए कपड़े  खरीदता है और खुद अपने लिए एक बनियान न खरीदकर भी मुस्कुराते हुए घर आता है या एक पिता जो रिक्सा चलाकर घर चलाते हुए अपनी संतान को इंजीनियर या डॉक्टर बनने कि प्रेरणा देता है या एक माता जो दूसरों के घरों में काम करके अपने बच्चों के स्कूल का फीस भरती है। सम्भव है कि एक माता-पिता के रूप में ऐसा कुछ आप पर भी लागू होता हो परन्तु सत्य यह भी है कि अगर आप माता-पिता नहीं हैं तो आप माता-पिता के ऐसे कठिन प्रयासों के पीछे छुपे दर्द को नहीं परख सकते। वास्तव में माता-पिता का यह प्रयास उनके सक्षम प्रयासों के १००% से कई गुणा  ज्यादा होता है।   
    यहाँ अंत में सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि संतान के प्रति माता-पिता के उत्तरदायित्व का निर्वहन अमूल्य है जिसके समानंतर दुनियां का और कोई सम्बन्ध - भाव नहीं ठहर सकता। 
   यहाँ इस बात कि चर्चा किए बिना यह आलेख पूरा नहीं हो सकता कि अकसर कुछ संतानें यह शिकायत करती  हैं कि उनके माता-पिता योग्य नहीं हैं अर्थात वे कम पढ़े -लिखे हैं, गुस्सैले हैं, अनैतिक हैं या बेवकूफ हैं। 
 ऐसा होना और ऐसा होने पर ऐसा मानना अनैतिक नहीं है पर यहाँ उनकी संतानों को यह समझने कि आवश्यकता अवश्य है कि ऐसी सारी स्थितियां माता-पिता के साधन, सम्पन्नता,व मार्गदर्शन के अभाव के कारण जन्म लेती हैं। सम्भव है कि अपने विपन्नता  के जिम्मेदार वे स्वयं हों पर ऐसी स्थिति में भी वे चाहे गलत सोचें या सही, गलत करें या सही, पर हर हल में संतान के प्रति उनकी मंशा सही ही रहती है इसलिए आप यहाँ यह कसम खा सकते हैं कि बड़े होकर आप अपने माता-पिता से सीना तानकर  कभी ये नहीं पूछेंगे कि...." आपने मेरे लिए किया क्या है ! " 

  



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